
मध्य पूर्व में एक बड़े सैन्य टकराव का खतरा मंडराने लगा है. अमेरिका इस वक्त हाई अलर्ट पर है. उसे डर है कि इजराइल कभी भी ईरान पर हमला कर सकता है. इसी तनाव को देखते हुए, अमेरिकी विदेश विभाग ने इराक में काम कर रहे अपने कुछ कर्मचारियों को देश छोड़ने की इजाजत दे दी है. वहीं, अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने भी पूरे मध्य पूर्व में तैनात अपने सैन्य कर्मियों के परिवारों को वहां से निकलने के लिए हरी झंडी दे दी है.
यह माहौल तब और गरमा गया है जब खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौते की उम्मीदें कम होने की बात कही है. ट्रंप का कहना है कि वह ईरान के साथ कोई ऐसा समझौता करना चाहते थे जिससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लग सके और मध्य पूर्व में एक बड़े सैन्य टकराव को टाला जा सके.
ट्रंप ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बताया, "मुझे अब कुछ महीने पहले की तुलना में कम भरोसा है. मुझे अब डील होने की उम्मीद बहुत कम है."
असल चिंता की वजह अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट है. खुफिया अधिकारियों को यह डर सता रहा है कि इजराइल, अमेरिका से पूछे बिना ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ट्रंप प्रशासन की ईरान के साथ चल रही नाजुक परमाणु बातचीत पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. इसके अलावा, यह लगभग तय है कि ईरान इसका बदला लेने के लिए उस इलाके में मौजूद अमेरिकी ठिकानों और हितों पर जवाबी हमला करेगा.
ईरान परमाणु हथियार नहीं बना सकता
खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि कुछ अमेरिकी कर्मियों को मध्य पूर्व से बाहर ले जाया जा रहा है "क्योंकि यह एक खतरनाक जगह हो सकती है." उन्होंने पत्रकारों से कहा, "हम देखेंगे कि क्या होता है. हमने नोटिस दे दिया है. ईरान परमाणु हथियार नहीं बना सकता."
निकासी के लिए उठाए गए प्रमुख कदम
- इराक: अमेरिकी विदेश विभाग ने बगदाद स्थित अपने दूतावास से सभी गैर-आवश्यक कर्मियों को तुरंत देश छोड़ने का आदेश दिया है.
- बहरीन और कुवैत: इन देशों में भी तैनात गैर-ज़रूरी कर्मचारियों और उनके परिवारों को यह विकल्प दिया गया है कि वे चाहें तो देश छोड़ सकते हैं.
- सैन्य परिवार: अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने पूरे मध्य पूर्व में तैनात सैन्य कर्मियों के आश्रितों (परिवारों) को स्वेच्छा से यानी अपनी मर्ज़ी से वापस लौटने की इजाजत दे दी है. अधिकारियों का कहना है कि इसका सबसे ज्यादा असर बहरीन पर पड़ेगा, जहां अमेरिकी सैन्य कर्मियों के सबसे ज़्यादा परिवार रहते हैं.
तनाव की जड़: क्यों रुकी परमाणु वार्ता?
इस पूरे तनाव के केंद्र में ईरान का तेजी से बढ़ता परमाणु कार्यक्रम है. अमेरिका और अन्य विश्व शक्तियाँ ईरान के साथ एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रही हैं ताकि उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित किया जा सके. इसके बदले में, अमेरिका ईरान पर लगे कड़े आर्थिक प्रतिबंधों में ढील देगा. हालांकि, ईरान लगातार यह कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है.
दोनों देशों के बीच बातचीत का अगला, यानी छठा दौर, इस सप्ताह के अंत में ओमान में होना था. लेकिन अब अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इस बातचीत के होने की संभावना न के बराबर है.
राष्ट्रपति ट्रंप, जो पहले बातचीत विफल होने पर सैन्य कार्रवाई की धमकी दे चुके हैं, ने भी डील को लेकर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा, "वे (ईरान) देरी करते दिख रहे हैं, और मुझे लगता है कि यह शर्म की बात है. मुझे कुछ महीने पहले की तुलना में अब बहुत कम भरोसा है."
बढ़ती बयानबाजी और सीधी धमकियाँ
जैसे-जैसे कूटनीतिक रास्ते बंद हो रहे हैं, दोनों तरफ से बयानबाजी बेहद तीखी हो गई है.
- ईरान की खुली धमकी: ईरान के रक्षा मंत्री, जनरल अज़ीज़ नासिरज़ादेह ने पत्रकारों से कहा कि हालांकि तेहरान बातचीत से समाधान की उम्मीद करता है, लेकिन वह अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार है. उन्होंने धमकी देते हुए कहा, "अगर हम पर संघर्ष थोपा गया, तो दुश्मन का नुकसान निश्चित रूप से हमसे कहीं ज़्यादा होगा, और उस स्थिति में, अमेरिका को यह क्षेत्र छोड़ना होगा, क्योंकि उसके सभी ठिकाने हमारी पहुंच के भीतर हैं. हम बिना किसी हिचकिचाहट के उन सभी को निशाना बनाएंगे."
- अमेरिका का कड़ा रुख: वहीं, अमेरिका में भी ईरान को लेकर सख्त रुख अपनाया जा रहा है. रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन ने कहा कि रक्षा सचिव हेगसेथ ने "पुष्टि की है कि ईरान का आतंकवादी शासन सक्रिय रूप से परमाणु हथियार की दिशा में काम कर रहा है." उन्होंने कहा, "हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा, हमारे सहयोगियों की सुरक्षा और इस क्षेत्र के लाखों नागरिकों की खातिर, ऐसा नहीं होने दिया जा सकता."
वैश्विक व्यापार और समुद्री मार्गों पर खतरा
इस तनाव का असर अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विशेषकर समुद्री मार्गों पर भी दिखने लगा है.
- ब्रिटेन की नौसेना द्वारा संचालित एक समुद्री व्यापार संगठन ने फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य में जहाजों के लिए एक चेतावनी जारी की है. चेतावनी में कहा गया है कि "क्षेत्र में बढ़े तनाव के कारण सैन्य गतिविधि बढ़ सकती है, जिसका सीधा असर नाविकों पर पड़ सकता है." यह वही इलाका है जहां से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा तेल और अन्य ज़रूरी सामानों का व्यापार करता है.
- एक ब्रिटिश समुद्री सुरक्षा कंपनी, एम्ब्रे ने कहा है कि "इज़राइल से जुड़े व्यापारिक जहाजों पर जवाबी सैन्य कार्रवाई का खतरा बढ़ गया है." बयान में यह भी कहा गया है कि अगर अमेरिका इज़राइली हमले का समर्थन करता है, तो अमेरिकी जहाजों के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा.
शिपिंग उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इज़राइल/अमेरिका और ईरान के बीच एक पूर्ण संघर्ष छिड़ जाता है, तो होर्मुज जलडमरूमध्य निश्चित रूप से कुछ समय के लिए बंद हो जाएगा, जिससे दुनिया भर में तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी.
कुल मिलाकर, स्थिति बेहद नाजुक है. कूटनीतिक रास्ते बंद होते दिख रहे हैं, सैन्य धमकियाँ बढ़ रही हैं और पूरा मध्य पूर्व एक अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहा है, जहां एक छोटी सी चिंगारी भी एक बड़े युद्ध का रूप ले सकती है.