फादर्स डे 2024 (Photo Credits: File Image)
Father’s Day 2025: पिता रिश्तों की नींव होते हैं– मजबूत, स्थिर और गहरी, जो कभी दिखते नहीं, लेकिन उनके बिना कुछ भी टिक नहीं सकता. मां अगर जीवन की सांस हैं, तो पिता वो रीढ़ हैं, जो हमें पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ा रखती है. इस पितृ दिवस (Father’s Day) 15 जून 2025 के अवसर पर आइए, उस नींव, उस त्याग और बलिदान को याद करें, उसे महसूस करें, उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करें, अगर वह आज भी हमारे साथ हैं, तो उनसे कहें, ‘कि आपका साथ होना ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है पिताजी, और आपकी छाया ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है.’ यह भी पढ़ें: Effective Quotes on World Day Against Child Labour 2025: ‘बच्चों को कलम दें, औजार नहीं’, विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर भेजें ऐसे प्रेरक कोट्स!
क्या है पिता का अस्तित्व?
पिता वो रिश्ता है, वो संबंध है, जो अक्सर शब्दों या बातों से नहीं, बल्कि अपने कार्यों से प्रेम का अहसास कराता है. वह सब कुछ देखते, समझते और सहते हुए भी चुप रहते हैं, ना अपनी पीड़ा या दुख जाहिर करते हैं, ना उनकी जुबां पर किसी के भी प्रति कोई शिकवा-शिकायत रहती है, बस अपने बच्चों, अपने परिवार की खुशी के लिए दिन रात खटते हुए कड़ी मेहनत करते हैं. परिवार के सपनों को साकार करने, और उनके चेहरे पर मुस्कान देखने की कोशिश में वह स्वयं को, स्वयं की दुनिया को कहीं पीछे छोड़ते जाते हैं.
जिम्मेदारियों का भार, मुस्कान के पीछे छुपा त्याग
बचपन में जब हम खिलौनों, नये-नये कपड़ों की ज़िद करते थे, तो पिता अपनी जेबें खाली कर देते थे. स्कूल की फीस भरने से लेकर हमारे कॉलेज के सपनों तक, उन्होंने न जाने कितनी रातें करवटें बदलते हुए बिताई होंगी, दफ्तर में कितना श्रम, कितनी उलाहना झेला होगा.. लेकिन सुबह-सवेरे हमेशा मुस्कुराते हुए ही उठे. उनके पास शायद कहने के लिए मीठे शब्द नहीं होते, लेकिन उनकी खामोशी में एक भरोसा, एक विश्वास होता है,
‘मैं हूँ ना.’
पिता की यही उपस्थिति, यही मौन विश्वास, हमें जीवन की सबसे कठिन राहों पर भी चलने की ऊर्जा देता है.
‘स्नेह और प्यार’, जो शब्दों में नहीं, हर सांस में होता है
पिता का प्यार मां की तरह दिखता नहीं, लेकिन हर वक्त हमारे इर्द-गिर्द रहता है. वे सुबह जल्दी उठकर ऑफिस चले जाते हैं, शाम को थके-हारे लौटते हैं, फिर भी बच्चों की पढ़ाई, उनके करियर, उनकी खुशी और उनके सपनों के बारे में सबसे पहले सोचते हैं. बचपन में हमें यह समझ में नहीं आता, तब उनकी डांट बुरी लगती है, सख्ती कठोर लगती है, लेकिन वक्त के साथ समझ में आता है कि उनकी डांट के पीछे, हमें गिरते अथवा, हारते देखने का डर रहता था. आज पिता बनने के बाद उस डर या सोच का अहसास होता है.
समय के साथ बुजुर्ग हो जाते हैं पिता
जब वह धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं, उनकी चाल धीमी होती जाती है, तब हमें महसूस होता है कि जिन कंधों ने कभी हमें उठाया था, अब उन्हें सहारे की ज़रूरत है. वो पिता जो कभी हमारी छाया थे, अब हमारी नजरें उनका सहारा बन जाती हैं. ये समय होता है, जब हमें उनके लिए वह सब लौटाना होता है, जो उन्होंने हमें बिना शर्त दिया था…
फादर्स डे 2024 (Photo Credits: File Image)
Father’s Day 2025: पिता रिश्तों की नींव होते हैं– मजबूत, स्थिर और गहरी, जो कभी दिखते नहीं, लेकिन उनके बिना कुछ भी टिक नहीं सकता. मां अगर जीवन की सांस हैं, तो पिता वो रीढ़ हैं, जो हमें पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ा रखती है. इस पितृ दिवस (Father’s Day) 15 जून 2025 के अवसर पर आइए, उस नींव, उस त्याग और बलिदान को याद करें, उसे महसूस करें, उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करें, अगर वह आज भी हमारे साथ हैं, तो उनसे कहें, ‘कि आपका साथ होना ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है पिताजी, और आपकी छाया ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है.’ यह भी पढ़ें: Effective Quotes on World Day Against Child Labour 2025: ‘बच्चों को कलम दें, औजार नहीं’, विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर भेजें ऐसे प्रेरक कोट्स!
क्या है पिता का अस्तित्व?
पिता वो रिश्ता है, वो संबंध है, जो अक्सर शब्दों या बातों से नहीं, बल्कि अपने कार्यों से प्रेम का अहसास कराता है. वह सब कुछ देखते, समझते और सहते हुए भी चुप रहते हैं, ना अपनी पीड़ा या दुख जाहिर करते हैं, ना उनकी जुबां पर किसी के भी प्रति कोई शिकवा-शिकायत रहती है, बस अपने बच्चों, अपने परिवार की खुशी के लिए दिन रात खटते हुए कड़ी मेहनत करते हैं. परिवार के सपनों को साकार करने, और उनके चेहरे पर मुस्कान देखने की कोशिश में वह स्वयं को, स्वयं की दुनिया को कहीं पीछे छोड़ते जाते हैं.
जिम्मेदारियों का भार, मुस्कान के पीछे छुपा त्याग
बचपन में जब हम खिलौनों, नये-नये कपड़ों की ज़िद करते थे, तो पिता अपनी जेबें खाली कर देते थे. स्कूल की फीस भरने से लेकर हमारे कॉलेज के सपनों तक, उन्होंने न जाने कितनी रातें करवटें बदलते हुए बिताई होंगी, दफ्तर में कितना श्रम, कितनी उलाहना झेला होगा.. लेकिन सुबह-सवेरे हमेशा मुस्कुराते हुए ही उठे. उनके पास शायद कहने के लिए मीठे शब्द नहीं होते, लेकिन उनकी खामोशी में एक भरोसा, एक विश्वास होता है,
‘मैं हूँ ना.’
पिता की यही उपस्थिति, यही मौन विश्वास, हमें जीवन की सबसे कठिन राहों पर भी चलने की ऊर्जा देता है.
‘स्नेह और प्यार’, जो शब्दों में नहीं, हर सांस में होता है
पिता का प्यार मां की तरह दिखता नहीं, लेकिन हर वक्त हमारे इर्द-गिर्द रहता है. वे सुबह जल्दी उठकर ऑफिस चले जाते हैं, शाम को थके-हारे लौटते हैं, फिर भी बच्चों की पढ़ाई, उनके करियर, उनकी खुशी और उनके सपनों के बारे में सबसे पहले सोचते हैं. बचपन में हमें यह समझ में नहीं आता, तब उनकी डांट बुरी लगती है, सख्ती कठोर लगती है, लेकिन वक्त के साथ समझ में आता है कि उनकी डांट के पीछे, हमें गिरते अथवा, हारते देखने का डर रहता था. आज पिता बनने के बाद उस डर या सोच का अहसास होता है.
समय के साथ बुजुर्ग हो जाते हैं पिता
जब वह धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं, उनकी चाल धीमी होती जाती है, तब हमें महसूस होता है कि जिन कंधों ने कभी हमें उठाया था, अब उन्हें सहारे की ज़रूरत है. वो पिता जो कभी हमारी छाया थे, अब हमारी नजरें उनका सहारा बन जाती हैं. ये समय होता है, जब हमें उनके लिए वह सब लौटाना होता है, जो उन्होंने हमें बिना शर्त दिया था…